मैं जितने साल जी चुका हूँ, उससे अब कम साल मुझे जीना है। यह समझ आने के बाद मुझमें यह परिवर्तन आया है :
- किसी प्रियजन की विदाई से अब मैं रोना छोड़ चुका हूँ, क्योंकि आज नहीं तो कल मेरी बारी भी आएगी।
- अगर मेरी विदाई अचानक हो जाती है, तो मेरे बाद क्या होगा, यह सोचना छोड़ दिया है। मुझे विश्वास है कि मेरे जाने के बाद सब ठीक रहेगा।
- सामने वाले व्यक्ति के पैसे, ताकत, और पद से अब डरना छोड़ दिया है।
- अपने लिए समय निकालने की आदत डाल ली है। मान लिया है कि दुनिया मेरे कंधों पर नहीं टिकी है। मेरे बिना भी सब चलता रहेगा।
- छोटे व्यापारियों और फेरीवालों से मोल-भाव करना बंद कर दिया है। कभी-कभी ठगा भी जाता हूँ, पर यह सोचकर हँसते हुए आगे बढ़ जाता हूँ।
- कबाड़ इकट्ठा करने वालों को बिना झिझक फटी पुरानी चीज़ें और खाली डिब्बियाँ दे देता हूँ। उनके चेहरों पर खुशी देखकर मुझे संतोष मिलता है।
- सड़क पर छोटे व्यापारियों से बेकार की चीजें भी खरीद लेता हूँ, उनके प्रोत्साहन के लिए।
- बुजुर्गों और बच्चों की एक ही बात बार-बार सुनने में अब मुझे कोई दिक्कत नहीं होती।
- गलत व्यक्ति के साथ बहस करने की बजाय मानसिक शांति बनाए रखना पसंद करता हूँ।
- लोगों के अच्छे कामों और विचारों की दिल खोलकर तारीफ करता हूँ। ऐसा करने से जो आनंद मिलता है, उसका आनंद लेता हूँ।
- ब्रांडेड चीजों से व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना छोड़ दिया है। समझ लिया है कि व्यक्तित्व विचारों से निखरता है, न कि ब्रांड से।
- ऐसे लोगों से दूरी बना ली है जो अपनी बुरी आदतें मुझ पर थोपने की कोशिश करते हैं। अब उन्हें सुधारने की कोशिश भी नहीं करता।
- जब कोई मुझे पीछे छोड़ने के लिए चालें चलता है, तो मैं शांत रहकर उसे रास्ता दे देता हूँ। क्योंकि ना तो मैं किसी दौड़ में हूँ और ना ही मेरा कोई प्रतिद्वंद्वी है।
- वही करता हूँ, जिससे मुझे खुशी मिलती है। अब “लोग क्या कहेंगे?” की परवाह नहीं करता।
- फाइव-स्टार होटलों की बजाय प्रकृति के करीब रहना पसंद करता हूँ। जंक फूड छोड़कर सादी रोटी-सब्जी में संतोष पाता हूँ।
- अपने ऊपर खर्च करने की बजाय जरूरतमंदों की मदद करके आनंद लेता हूँ।
- गलत को सही साबित करने की बजाय अब मौन रहना पसंद करता हूँ। चुप रहकर मन की शांति का आनंद लेता हूँ।
- यह मान लिया है कि मैं इस दुनिया का एक यात्री हूँ। अपने साथ केवल प्रेम, आदर, और मानवता ही ले जा सकूँगा।
- मेरा शरीर मेरे माता-पिता का दिया हुआ है, आत्मा प्रकृति का दान है। जब मेरा कुछ भी अपना नहीं है, तो लाभ-हानि की चिंता कैसी?
- अपनी कठिनाइयाँ और दुख दूसरों को कहना छोड़ दिया है। जो समझते हैं, उन्हें बताने की जरूरत नहीं और जिन्हें बताना पड़ता है, वे कभी समझते ही नहीं।
- अब अपने सुख-दुख के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानता हूँ। यह समझ गया हूँ कि मेरी खुशी मेरे ही हाथ में है।
- हर पल को जीने का महत्व जान लिया है। जीवन अमूल्य है और यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है।
- आंतरिक आनंद के लिए मानव सेवा, जीव दया और प्रकृति की सेवा में रम गया हूँ।
- देवी-देवताओं और प्रकृति की गोद में रहने लगा हूँ। अंततः उन्हीं में समा जाना है।
देर से ही सही, लेकिन अब जीने का सही अर्थ समझ आ गया है।