कुल्लू दशहरा 2024: एक विस्तृत जानकारी

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कुल्लू दशहरा 2024: एक विस्तृत जानकारी

कुल्लू दशहरा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू घाटी में मनाया जाने वाला एक अद्वितीय और प्रसिद्ध त्योहार है। यह दशहरा भारत के अन्य हिस्सों में मनाए जाने वाले दशहरा से बिल्कुल अलग है, जहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है। कुल्लू दशहरा एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक उत्सव है, जो अपनी अद्वितीयता और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। हर साल यहां हजारों पर्यटक और श्रद्धालु इस आयोजन का हिस्सा बनने के लिए आते हैं।

कुल्लू दशहरा का इतिहास

कुल्लू दशहरा की शुरुआत 17वीं शताब्दी में राजा जगत सिंह के शासनकाल में हुई थी। कहा जाता है कि राजा ने गलती से एक ब्राह्मण पर झूठा आरोप लगाकर उसे प्रताड़ित किया, जिसके बाद राजा को पश्चाताप हुआ। तब एक संत की सलाह पर राजा ने भगवान रघुनाथ की मूर्ति कुल्लू में स्थापित की और भगवान से माफी मांगी। तभी से रघुनाथ जी को कुल्लू का राजा माना जाने लगा और तब से दशहरा के समय भगवान रघुनाथ की शोभायात्रा निकाली जाती है। इस परंपरा की शुरुआत 1660 के दशक में हुई और तब से यह पर्व पूरे राज्य के लिए आस्था और भक्ति का प्रतीक बन गया है।

कुल्लू दशहरा 2024 में होने वाली गतिविधियां

कुल्लू दशहरा 2024 की शुरुआत दशमी तिथि से होती है, जब भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति को भव्य रथ यात्रा में पूरे शहर में घुमाया जाता है। यह रथ यात्रा दशहरे के सात दिनों तक चलती है और इसमें हिमाचल के विभिन्न हिस्सों से स्थानीय देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी शामिल किया जाता है। मुख्य आकर्षण निम्नलिखित गतिविधियां हैं:

  1. रथ यात्रा: भगवान रघुनाथ जी की भव्य शोभायात्रा, जिसे ‘रथ यात्रा’ कहा जाता है, इसमें हजारों भक्त शामिल होते हैं। यह यात्रा ऐतिहासिक ढालपुर मैदान से शुरू होती है।
  2. सांस्कृतिक कार्यक्रम: स्थानीय और राष्ट्रीय कलाकारों द्वारा संगीत और नृत्य कार्यक्रमों का आयोजन होता है। ये कार्यक्रम हिमाचली संस्कृति की विविधता को दर्शाते हैं।
  3. हस्तशिल्प मेला: कुल्लू दशहरा के दौरान एक विशाल मेला लगता है, जिसमें हिमाचल प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए शिल्पकार अपने हस्तशिल्प का प्रदर्शन और बिक्री करते हैं। कांगड़ा चित्रकला, कुल्लू शॉल, और स्थानीय व्यंजन इस मेले का मुख्य आकर्षण होते हैं।
  4. प्रदर्शनी और खेल: इस दौरान कई खेल प्रतियोगिताओं और प्रदर्शनियों का आयोजन भी किया जाता है, जो स्थानीय संस्कृति और परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

कार्यक्रम सूची

कुल्लू दशहरा 2024 के लिए प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित हैं:

  • पहला दिन: रथ यात्रा की शुरुआत।
  • दूसरा और तीसरा दिन: सांस्कृतिक कार्यक्रम, जिसमें विभिन्न राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कलाकार शामिल होते हैं।
  • चौथा से छठा दिन: स्थानीय देवी-देवताओं की शोभायात्रा और हस्तशिल्प मेला।
  • सातवां दिन: ‘लंका दहन’ की रस्म, जिसमें रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है।

प्रशासन और सुविधा

कुल्लू दशहरा के दौरान लाखों की संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं, इसलिए प्रशासन द्वारा इस उत्सव को सफलतापूर्वक आयोजित करने के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं।

  1. आवास सुविधा: पर्यटकों के लिए कुल्लू और आसपास के क्षेत्रों में होटलों, होमस्टे और गेस्टहाउस की विस्तृत व्यवस्था की जाती है। साथ ही अस्थायी शिविर भी लगाए जाते हैं।
  2. यातायात व्यवस्था: राज्य परिवहन निगम (HRTC) द्वारा विशेष बस सेवाओं की व्यवस्था की जाती है, जो पर्यटकों और स्थानीय लोगों को आयोजन स्थल तक लाती हैं। इसके अलावा पार्किंग और यातायात नियंत्रण के लिए भी विशेष व्यवस्था की जाती है।
  3. स्वास्थ्य सेवाएं: आयोजन के दौरान किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए चिकित्सा शिविर और एंबुलेंस सेवाएं तैनात रहती हैं। इसके अलावा, जिला अस्पताल के डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी भी आयोजन स्थल पर उपस्थित रहते हैं।

सुरक्षा प्रबंध

कुल्लू दशहरा के दौरान सुरक्षा प्रबंधों पर विशेष ध्यान दिया जाता है, ताकि हर किसी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

  1. पुलिस बल: हिमाचल प्रदेश पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों को प्रमुख स्थानों पर तैनात किया जाता है। ड्रोन से निगरानी और सीसीटीवी कैमरों का भी उपयोग किया जाता है।
  2. आपातकालीन सेवाएं: फायर ब्रिगेड, आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं और आपदा प्रबंधन दल भी तैयार रहते हैं, ताकि किसी भी अप्रिय घटना से निपटा जा सके।
  3. भीड़ प्रबंधन: बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं। साथ ही महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए भी अतिरिक्त कदम उठाए जाते हैं।

कैसे पहुंचे कुल्लू दशहरा 2024 में?

कुल्लू दशहरा में भाग लेने के लिए कुल्लू पहुंचना काफी आसान है:

  1. हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा भुंतर (कुल्लू-मनाली हवाई अड्डा) है, जो कुल्लू से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  2. रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिंदर नगर है, जो कुल्लू से करीब 125 किलोमीटर दूर है।
  3. सड़क मार्ग: हिमाचल प्रदेश राज्य परिवहन निगम और निजी बस सेवाएं कुल्लू को शिमला, चंडीगढ़, दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों से जोड़ती हैं।

निष्कर्ष

कुल्लू दशहरा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह हिमाचल की संस्कृति, परंपरा और धरोहर का प्रतीक है। यह पर्व न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। 2024 में होने वाला कुल्लू दशहरा भी अपनी भव्यता और सांस्कृतिक विविधता के लिए यादगार होगा।

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